भारतीय गृहिणियों के 3R's Reduce, Reuse and Recycle

कोई भी उत्सव हो और उससे खाना-पीना न जुड़ा हो तो मतलब ही क्या जी! कई बार तो लगता है कि खाने को ध्यान में रखकर ही त्योहारों की उत्पत्ति हुई है. 
वैसे तो अब त्योहारों में पहले सी रौनक नहीं रही है फिर भी गुजरात में संक्रांति की बात ही निराली होती है. यहाँ आज के दिन उंधियु अवश्य बनता है. यह इस मौसम में उपलब्ध सब्जियों से बनने वाली स्वादिष्ट डिश है जो कि अपने आप में सम्पूर्ण है. इसे पूरी के साथ भी खाया जाता है. मिठाई में जलेबी के साथ इसकी जोड़ी जनम-जनम से चली आ रही है.
आजकल इसे आधुनिक रसोई में बड़े आराम से बनाया जा सकता है पर कहते हैं कि पारंपरिक तौर पर इसे मिट्टी के पात्र (Matlu) में औंधा रखकर आग में पकाया जाता था इसी कारण इसका नाम उंधियु (upside down) पड़ा. जैसे कि दाल-बाटी भी अब आधुनिक तरीके से बनने लगी है, कुछ ऐसा ही इसके साथ भी हुआ.

घर में संक्रांति के दिन तिल के लड्डू, मूँगफली की चिक्की और मुरमुरे(लाई) के लड्डू के साथ मंगौड़े भी बना करते थे. नमकीन की शौक़ीन हूँ तो इस दिन सुबह का नाश्ता यही बनाती हूँ. साथ में हरी चटनी और अदरक की चाय बनाने के बाद यही अनुभव होता है कि स्वर्ग में कुछ नहीं रखा! सब कुछ जीते-जी भी प्राप्त हो सकता है. उंधियु केवल मैं ही खाती हूँ इसलिए बहुत कम ही बार बनाती हूँ क्योंकि इसमें थोड़ी-थोड़ी सब्जियाँ लेने के बाद भी बहुत हो जाता है. सबके घरों में बनता ही है तो किसी को दे भी नहीं सकते. इतना शानदार बनाते भी नहीं! पर ऐसी बहुत सी dishes हैं जो भले ही कोई और न खाए पर मैं केवल अपने लिए बना लेती हूँ. इस बार उंधियु एक सखी ने भेज दिया तो अपन तो धन्यवाद दे-देकर बलिहारी हो रहे!
मंगौड़े इस बार छिलके वाली दाल के नहीं बनाए थे तो आनंद में एक प्रतिशत की कमी रही. पर खाए तो फिर भी छककर ही जी!
जो बच गए हैं उसकी शाम को रसेदार सब्ज़ी बनाई. मसाला न मिलाया होता तो हलवा भी बन सकता था.

चलते चलते उन सभी लोगों का एक भ्रम दूर करती चलूँ जो कहते हैं कि हम तो घर में सब फ्रेश ही खाते हैं. सुबह का शाम को तो जरा भी नहीं suit होता! तो सर जी, आपने अब तक भारतीय गृहिणियों को समझा ही नहीं! हम लंच में बची आलू की सब्जी(सूखी वाली) को डिनर में टमाटर या दही डालकर रसे वाली बना देते हैं या फिर इन आलुओं को कुचलकर कचौड़ी या आलू के पराँठे बनाकर मुस्कान के साथ परोस देते हैं. कभी-कभी बेसन घोलकर, इसकी बॉल्स बना तल भी दिया करते हैं. जी, हाँ जिसे आप आलू बड़ा कहते हो, वही.

जिन बच्चों को लगता है कि प्रोटीन उनकी सेहत के लिए हानिकारक है, उनकी माताश्री दाल से ही आटा गूँध देती हैं जिसे बच्चे चपर-चपर चट भी कर जाते हैं. सादा चावल का fried rice में make over भला किसने न किया होगा! तात्पर्य यह कि बची हुई सामग्री से नई डिश बनाने में तो हम लोगों का कोई मुक़ाबला ही नहीं!
लोग जब 3R's Reduce, Reuse and Recycle के ज्ञान वाला मन्त्र बाँट रहे होते हैं तब मुझे बड़ी जोर की हँसी आती है कि लल्ला तुम जो पर्यावरण के लिए सिखा रए हो, उसमें तो हम सब कबके Ph.D करके आजकल गाइड बने बैठे हैं.
- प्रीति 'अज्ञात'
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